Add To collaction

मन बेचैन है मैं क्या करूं

मन बेचैन है मैं क्या करूं

हाड़ मांस से जड़ा हुआ हूं
आशा और अरमान अनेक है
नींद आती नही है रातभर
मन बेचैन है मैं क्या करूं।
हर पल और हर क्षण
मेरी बदकिस्मती हर बार की तरह
मुझें एक नया दर्द देती है
मन बेचैन है मैं क्या करूं।
फ्री की वस्तु के चक्कर में
दर दर मैं भटक रहा हूं
परिवार को भी सोने नही देता हूं
मन बेचैन है मैं क्या करूं।
गहराई की बात करें तो
अपना सब कुछ मैं खो चुका हूं
तमाम हसरतें दिल में ही दफन कर दिया हूं
मन बेचैन है मैं क्या करूं।
सपनें जो देखा था रात में मैंने
उसे हकीकत बना नही पाया
शब्दों के बाण झेलते झेलते
मन बेचैन है मैं क्या करूं।
अब मेरी जवानी चली गई
आ गया है बुढ़ापा सज्जनों
अकेला छोड़कर अर्धांगिनी भी चली गई
मन बेचैन है मैं क्या करूं।

नूतन लाल साहू

   4
0 Comments